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dadaji
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Posted - 11 December 2006 : 20:06:56
Jai Jai Shree Gokulesh,
Badhai to all for the utsav of kallyanraiji's and 2nd day celebration of Shri Gusaiji's utsav. Gopalbhai please post the answers when you get time.
Haripriya.
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gopal
Pushtikul Elite Member - August 2003
1221 Posts
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Posted - 13 December 2006 : 16:10:28
Jai Jai ShriGokulesh,
Here at Jai Jai ShriGokulesh, Baroda, the utsav celebrations going all well, more then expectations. The Param Bhagyavan Sevak-Vaishnavas of Pushtimarg r making themselves Bhagyavaan by attending the Granth Satra. ShriGusaijis Namatmak Stuti, in the form of Stotra is ShriNaamratnakhya stotra.
Pujya ShriVitthalraiji Bavashri had taught first sloka of the names, i.e. from ShriGusaiji Bava's First name ShriVitthal, and till Sunder (4th name).
More i will add later after the utsav.
Jai Jai ShriGokulesh Parivaar, Baroda
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dadaji
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Posted - 14 December 2006 : 10:53:46
JAI JAI SHREE GOKULESH.
BADHAI...BADHAI...BADHAI...!!!!!!!!!
Haripriya.
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Kadakiar
Entry Level Member
33 Posts
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Posted - 14 December 2006 : 12:57:02
|| Shri Gokulesho Jayati ||
SERVE VAISHNAVAN KO AAJ KE UTSAV KI BAHOT BADHAI.....
SHRI VALLABH GRUH AAN BIRAJE SHRI VITTHAL RAJKUMAR,
JO VE HATO GAYE + BRAHMIN RAKSHAK, NAAM DIYO SHRI GUSAI,
JA NE KARI DAYA NITYA NIJ JUN PER, TA TE JANYO " PERMDAYAL"
SHRI VITTHALNATHJI NE KARI KRIPA, SIKHAI RITI+PRITI Shri VRAJJANKI...
ESO SWAROOP PRAGAT BHAYO AAJ SHRI VALLABH GHAR.....
NAAND GHERE ANNAND BHAYO, Shri Vallabh ghare Shri VITTHAL PRAGTYO...
JAY JAY SHRi GOKULESH
RAJENDRA P. KADAKIa
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jagdish
Mover & Shaker Member
380 Posts
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Posted - 14 December 2006 : 16:26:22
Jai Shri Krishna
Khoob Badhais to all on today's wonderful utsav occassion
PPG 108 shri Darshankumar je je shri has kindly shared a pad with us.
Bahori Krishna Sri Gokul pragate, Sri Vitthalnath hamare Dwapar Vasudha Bhaar Haryo, Hari Kaliyug Jiv Udhare.
Tab Vasudev Gruh Pragat hoy Ke Kansadik Ripu Mare Ab Vallabh Gruh Pragat Hoe Ke Mayavad Nivare
Eso Kavi Ko he Jag mahiya, Barane Gun Jo Tihare Manikchand Prabhuko Shiv Khojat, Gavat/gavad ved prakare
Best Wishes jagdish
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unnati
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Posted - 14 December 2006 : 17:00:36
Jai jai shri gokulesh
Badhai to all on the auspicious occassion of Shri Gusaiji's Prabhu's Pragatya Divas..
Shri Vallabha Charan Vina Sharan Koni Jaou.....Shri Vitthala Nam Vina Mantra Kya Thi Paou......Shri Vallabha Charan Vina Sharan Koni Jaou.....
Unnati Kadakia
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jigershah
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Posted - 14 December 2006 : 21:28:14
jsk
posh krishna navmi jaab aayee
ghar ghar mangal hotah badhai
let us all get charans sparsh of the creator of raag bhog shringar shri vitthalesh prabhu
regs jiger shah
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jagdish
Mover & Shaker Member
380 Posts
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Posted - 16 December 2014 : 23:51:16
Jai Shri Krishna/Jai Jai Shri Gokulesh,
Khoob badhais for today's, shri gusaiji's pragatya utsav
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govindshah2
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Posted - 01 January 2015 : 11:17:51
पूज्यचरण श्रीगुरुदेव सदैव आज्ञा करे की उत्सव श्रीमहाप्रभु की वाणीके बगैर अधूरों रह है। सो अपने घरकी परंपरा अनुसार अपन महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यचरण सूत श्रीविट्ठलनाथ प्रभुचरणके पंचमात्मज श्रीरघुनाथ प्रभुचरण कृत “श्रीविट्ठलेशस्तव:” कु अपन अध्ययन करे।
या ग्रंथको अपन मूल के संग भावानुवादसू समजवेको प्रयास करे। वचन सीधे-सरल है।
“श्रीविट्ठलेशस्तव:”
न मंत्रे न तंत्रे न च ज्ञान-सिद्धौ, न वैकुंठबुद्धिस्तु वैकुंठ-लोके ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ १ ॥
भावार्थ: कोई प्रकारके मंत्र, तंत्र, ज्ञानसिद्धि और वैकुंठलोककी प्राप्ति मेरे बुद्धिमे न आए, अपितु मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे ही होवे। १ ॥
पदाम्भोरूहाम्भो विभिन्नर्ति तापे, कृपादैक् स्वकै ताद्रशोदारशीले ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ २ ॥
भावार्थ: जिनके चरणकमलनसु अलग होइवे पडेकी आर्तिसू पीड़ित स्वजनन पर कृपादृष्टिसू देखवेको उदार स्वभाव जिनमे है, उन श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा होवे। २ ॥
न वाके वराके न राकेशयाने, पिनकेश-लोके न व केलि-रक्ये ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ३ ॥
भावार्थ: तुच्छ ऐसे स्वर्गलोक, चंद्रलोक, अथवा सुंदर क्रीडायुक्त कैलाशलोकमे नहीं, अपितु मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे ही होवे। ३ ॥
यदा लोकतस्तोकतोपि क्षणेन, प्रमुकतो भवेल्लोकत: शोकतोयम् ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ४ ॥
भावार्थ: जिनके दर्शनमात्रसू जीव या लोकके शोक (दु:ख/क्लेश) मे सु क्षणमे ही प्रमुक्त माने विशेष प्रकारसू मुक्त होवे है, ऐसे श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा होवे। ४ ॥
स्तुतिर्वा मतिर्वा कदा वा यदा वा, यथा वा तथा स्यात्पदार्था: क्रियन्त: ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ५ ॥
भावार्थ: कब और जब भी स्मृति, स्मरण और मति (विचार) होवे अथवा तो काऊ हु बड़े बड़े पदार्थ होवे, तोहू मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे ही होवे। ५ ॥
महामोहदग्धोऽपि कालाग्निदग्धो, विदग्धो भवेत्स्नेह द्रष्ट्याऽपि यस्य ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ६ ॥
भावार्थ: सांसारिक मोहसू दग्ध, कालरूपी अग्निसु दग्ध होवे, तोहू जिनके स्नेहभरी कृपाद्रष्टि कोउ विदग्ध माने कोउ चतुर/विद्वान होई जाय, ऐसे श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा होवे। ६ ॥
यदन्गीकृतं जीवमङ्गी करोति, त्रिभङ्गी स्वयं वेणुरङ्गी प्रभुर्यत् ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ७ ॥
भावार्थ: श्रीविट्ठलेशप्रभुचरण द्वारा अंगीकृत जीवको, जो स्वयंको अंगीकृत आने है, ऐसे त्रिभंगीललित श्रीकृष्णके जो स्वयं वेणुरंगी अर्थात वेणुके रंगसू रंगे भाए है ऐसे (श्रीक़ृष्ण-स्वरूप) श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा ही होवे। ७ ॥
शरण्योऽतिधन्यो धरण्या वरेह्यो, वरीवर्ति गण्यो यदन्यो न कोऽपि ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ८ ॥
भावार्थ: जिनके सिवाय कोउ शरण्य माने शरण जायवे योग्य नाही, धन्यता हु नाही, या भूतले और कोउ वरवे योग्य हु नाही और वरीवर्ति माने गिनती करी जा सके ऐसे हु कोउ श्रेष्ठ नाही, ऐसे सदा शरण्य श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा होवे। ८ ॥
सदानन्दरूप: सदानन्दारूपात्मनाऽऽनन्दलीलारसं यो ददाति ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ ९ ॥
भावार्थ: जो सदा आनंदरूप है और हु सदानंदरूपसू स्वयंके आत्माके आनंद-लीलारसको दान स्वकीयजननको करे है, ऐसे श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) सदा होवे। ९ ॥
न भक्तिर्न मुक्तिर्न वै सर्वशक्तिर्विरक्तिर्नमुक्तिततो भक्तिरुक्ता ॥
गतिर्विट्ठलेशे रतिर्विट्ठलेशे मतिर्विट्ठलेशे, सदा वै ममास्तु ॥ १० ॥
भावार्थ: मोकू ना तो भक्ति, न तो मुक्ति (मोक्ष) न सर्वशक्ति न विरक्ति (वैराग्य) न युक्ति (एकात्मता) जाको भक्ति कहे है, वे सर्व नहीं चाहिए, अपितु मेरी गति, रति (प्रेम) और मति (बुद्धि) श्रीविट्ठलेशप्रभुचरणमे ही सदा होवे। १० ॥
॥ इति श्रीरघुनाथजी विरचित: श्रीविट्ठलेशस्तव: समाप्त: ॥
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Ankur
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Posted - 06 January 2015 : 18:30:36
Jay Shri Vitthalesh.
Thankyou for sharing the divine Vachnamruts explaining the swaroop of Shri Vitthalnathji.
Jay Shri Vallabh.
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